तुम्हारा बुना हुआ कोई स्वेअटर!
वक़्त की हथेली से पल चुनता हूँ,
तुम्हारी उँगलियों से में ख्वाब बुनता हूँ
कुछ गाँठ तो पहले की हैं
कुछ आज फिर कस देता हूँ
गर तुम्हारे ख्वाब साथ दे
तो उन पे सर रख
आज फिर सो जाता हूँ
और उन्हें बुनते बुनते
तुम्हारी ही उँगलियों में
अपने हिस्से की
कहानी उलझा जाता हूँ
फिर
न रहा मैं
न मेरी कहानी
बस तुम्हारी
बुदबुदाती उंगलियाँ
और किसी जाड़े के दुपहर में
तुम्हारा बुना हुआ कोई स्वेअटर
..
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