Wednesday, October 20, 2010

बस एक मुस्कराहट…

आज जैसे मैंने लफ्ज़ खो दिए…लफ्ज़ कुछ लम्हों में खो दिए...उन लम्हों में जहाँ मैं तुम्हारे कुछ करीब खड़ी थी…वो करीब जो उन लम्हों में खो गया...


हल्की सी धूप थी. कुछ ठंडी सी हवा भी. तुम साथ थे. पर मैं बोहत दूर थी.


और करीब होते, तो मेरे दिल की धड़कन सुन जाती. 
और करीब आते, तो मेरे मन में दबे राज़ जान जाते. 
और करीब से देखते, तो मेरी आँखों में उम्मीद नज़र आ जाती..


मगर उम्मीद है, के तुमने कुछ नहीं सुना…
उम्मीद है, के तुमने कुछ नहीं जाना…
उम्मीद है, के तुम्हें कुछ नज़र नहीं आया...


मैं कुछ कहना तो नहीं चाहती...पर जाने से पहले...


जाने से पहले...कुछ देना चाहती हूँ… 


इन्ही गुमनाम लम्हों में से…तुम्हारे नाम...एक पल कैद करना चाहती हूँ… 


जाने तुमने देखा के नहीं.. पर एक पल था… हल्की सी धूप में,  हवा के चलते,  मैंने पल्कें उठा के.. इक बार मुस्कुराया था…


बस वही मुस्कराहट तुम्हें देना चाहती हूँ…


उसे मेरी कहानी समझ लो.. या यूँही कोई निशानी…
जहाँ भी जाना…
बस एक मुस्कराहट लेते जाना...
...

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